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Showing posts from March, 2025

Imam ruku me ho to aane wala shakhsh hath bandhega ya nahi

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सवाल: इमाम रुकू में हो, तो आने वाला शख्स तकबीर तहरीमा कहकर पहले हाथ बाँधे और फिर इमाम के साथ रुकू में मिले, या हाथ बाँधे बिना रुकू में चला जाए? بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ اَلْجَوَابُ بِعَوْنِ الْمَلِکِ الْوَھَّابِ اَللّٰھُمَّ ھِدَایَۃَ الْحَقِّ وَالصَّوَابِ इमाम रुकू में हो, तो आने वाला शख्स इस तरह खड़े-खड़े तकबीर तहरीमा कहे कि तकबीर खत्म होने तक हाथ घुटनों तक न पहुँचें, फिर अगर वह जानता हो कि इमाम साहब रुकू में इतना वक़्त लगाते हैं कि वह सना पढ़कर इमाम के साथ रुकू में शामिल हो सकता है, तो तकबीर तहरीमा के बाद हाथ बाँधकर सना पढ़े, क्योंकि सना पढ़ना सुन्नत है। इसके बाद दूसरी तकबीर कहता हुआ रुकू में जाए। और अगर यह गुमान हो कि सना पढ़ने की सूरत में इमाम साहब रुकू से उठ जाएंगे, तो तकबीर तहरीमा के बाद हाथ न बाँधे, बल्कि फौरन दूसरी तकबीर कहता हुआ रुकू में चला जाए, क्योंकि हाथ बाँधना उस क़याम की सुन्नत है, जिसमें ठहरकर कुछ पढ़ना मंशूर (प्रोजेक्टेड) हो और जिस क़याम में ठहरना और पढ़ना नहीं होता, उसमें सुन्नत हाथ छोड़ना है। फतावा रज़विया में है: "ज़ाहिर यह है कि मिस्ल क़या...

Jo shakhs rozana na rakhe to kya saqae fitr dena wajiba he ya nahi

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सवाल: जो शख्स रोज़ा न रखे, उस पर सदक़ा ऐ फ़ित्र वाजिब है या नहीं? मुस्तफ़्ती: जमीअल अहमद, महराज गंज, ज़िला बस्ती بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ اَلْجَوَابُ بِعَوْنِ الْمَلِکِ الْوَھَّابِ اَللّٰھُمَّ ھِدَایَۃَ الْحَقِّ وَالصَّوَابِ अल-जवाब: सदक़ा-ए-फ़ित्र वाजिब होने के लिए रोज़ा रखना शर्त नहीं, लिहाज़ा जो शख्स मालिके निसाब हो, अगर किसी उज्र मसलन सफ़र, मर्ज़, बुढ़ापे की वजह से या معاذ اللہ बिना उज्र के रोज़ा न रखे, तब भी उस पर सदक़ा-ए-फ़ित्र वाजिब है। रद्दुल मुहतार में है कि تجب الفطرة وإن أفطر عامدا. [ابن عابدين، رد المحتار على الدر المختار، ج: ٢، ص: ٣٦١، دار الفكر، بيروت] फिर दो सतर के बाद है: من أفطر لكبر أو مرض أو سفر يلزمه صدقة الفطر [المرجع السابق] [फ़तावा-ए-फ़ैज़ुर्रसूल, ज: 1, स: 507]

Muqtadi ke liye Salam pherna kab sunnat he

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मुक़्तदी (यानी जो शख्स इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहा हो) के लिए सलाम फेरने का सुन्नत तरीका क्या है? بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ اَلْجَوَابُ بِعَوْنِ الْمَلِکِ الْوَھَّابِ اَللّٰھُمَّ ھِدَایَۃَ الْحَقِّ وَالصَّوَابِ सुन्नत यह है कि जो मुक़्तदी शुरू से इमाम के साथ नमाज़ में शरीक है, वह इमाम के सलाम फेरते ही अपना पहला सलाम फेर दे। यानी जब इमाम ने सलाम फेरना शुरू किया, तो इमाम का सलाम खत्म होने से पहले मुक़्तदी सलाम फेरना शुरू कर दे। यही तरीका इमाम-ए-आज़म रज़ी अल्लाहु अन्हु के नज़दीक भी सुन्नत है और मुक़्तदी को इसी पर अमल करने का हुक्म है। बुखारी शरीफ में है "وَكَانَ ابْنُ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا يَسْتَحِبُّ إِذَا سَلَّمَ الْإِمَامُ أَنْ يُسَلِّمَ مَنْ خَلْفَهُ... عَنْ عِتْبَانَ قَالَ صَلَّيْنَا مَعَ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَسَلَّمْنَا حِينَ سَلَّمَ" हज़रत इब्ने उमर पसंद करते थे कि जब इमाम सलाम फेरे, तो मुक़तदी भी सलाम फेरे... हज़रत इत्बान  से मरवी है, कहते हैं कि हमने नबी पाक  ﷺ   के साथ नमाज़ पढ़ी, जब हुज़ूर ﷺ  ने सलाम फेरा, तो हम...

Kya tarawih ki namaz Beth ke padh sakte he

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  सवाल: क्या फरमाते हैं उलेमा-ए-किराम इस मसले के बारे में कि "मकतबा-ए-मदीना" की प्रकाशित की गई किताब "फैज़ान-ए-रमज़ान" पेज नंबर 175 पर पॉइंट नंबर 11 में लिखा है: "बिला उज्र तरावीह बैठकर पढ़ना मकरूह है... अलख" इस पर मेरा सवाल यह है कि यहाँ "मकरूह" से मुराद मकरूहे तहरीमी है या मकरूहे तन्जीही ? रहनुमाई फरमा दें। بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ اَلْجَوَابُ بِعَوْنِ الْمَلِکِ الْوَھَّابِ اَللّٰھُمَّ ھِدَایَۃَ الْحَقِّ وَالصَّوَابِ फुक़हा-ए-किराम का इस बात पर इत्तिफ़ाक़ है कि तरावीह की नमाज़ बिना किसी उज्र के बैठकर पढ़ना खिलाफे मुस्तहब है , लिहाजा पूछी गई सूरत में यहाँ "मकरूह" से मुराद मकरूहे तन्जीही व  खिलाफे मुस्तहब  है। अलबत्ता यह मसला ज़ेहन नशीं रहे कि सही कौल के मुताबिक़ अगरचे बगैर किसी उज्र के तरावीह की नमाज़ बैठकर पढ़ने से भी अदा हो जाएगी, लेकिन इस सूरत में खड़े होकर नमाज़ पढ़ने वाले के मुकाबले में आधा सवाब मिलेगा। लिहाजा अगर कोई उज्र न हो तो पूरी कोशिश यही होनी चाहिए कि तरावीह की नमाज़ खड़े होकर ही अदा की जाए ताकि प...

Kya tarawih ki qaza karna zaruri he

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  सवाल अगर किसी की नमाज़-ए-तरावीह रह जाए, तो क्या वह गुनहगार होगा? और क्या उसकी क़ज़ा लाज़िम होगी? بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ اَلْجَوَابُ بِعَوْنِ الْمَلِکِ الْوَھَّابِ اَللّٰھُمَّ ھِدَایَۃَ الْحَقِّ وَالصَّوَابِ रमज़ानुल मुबारक में हर अक़्लमंद, बालिग़, ग़ैर-माज़ूर मर्द और औरत के लिए रोज़ाना बीस रकअत तरावीह अदा करना सुन्नत-ए-मुअक्कदा है। अगर बिना उज्र एक-दो बार छोड़ दी, तो यह बुरा (इसाअत) है, लेकिन अगर इसे छोड़ने की आदत बना ली जाए, तो यह गुनाह होगा। इसलिए अगर किसी ने बिना किसी शरीअी उज्र के तरावीह की नमाज़ एक बार छोड़ दी, तो वह इसाअत (बुरी बात) का मुर्तकिब हुआ और अगर इसे छोड़ने की आदत बना ली, तो वह गुनहगार होगा और उस पर तौबा लाज़िम होगी। लेकिन इसकी क़ज़ा नहीं है। وَاللہُ اَعْلَمُ عَزَّوَجَلَّ وَرَسُوْلُہ اَعْلَم صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم

Witr me dua e qunut kab padhe

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सवाल: रमज़ान मुबारक में जब वित्र की नमाज़ जमात के साथ पढ़ी जाती है, तो अगर किसी की एक रकअत छूट जाए और वह दूसरी रकअत में शामिल हो, तो क्या वह इमाम के साथ दुआ-ए-क़ुनूत पढ़ेगा या अपनी छूटी हुई रकअत में पढ़ेगा? कृपया स्पष्ट करें, अल्लाह आपको अज्र अता करे। بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيمِ जवाब अगर कोई शख्स वित्र की दूसरी रकअत में शामिल हो, तो वह दुआ-ए-क़ुनूत इमाम के साथ ही पढ़ेगा। अपनी छूटी हुई रकअत में नहीं पढ़ेगा, क्योंकि दोबारा पढ़ने की इजाज़त नहीं है। हज़रत अल्लामा इब्राहीम हलबी लिखते हैं: المسبوق في الوتر يقنت مع الإمام إذا قنت مع الإمام لا يقنت بعدها أي بعد الركعة التي قنت فيها مع الإمام لأنه قنت فى موضعه إذا وقع في موضعه بيقين لا يكرر لأن تكراره غير مشروع. [غنية المتملي في شرح منية المصلي، ص: ٤٢١] और हज़रत सदरुश्शरीअह रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं मसबूक इमाम के साथ क़ुनूत पढ़ेगा, बाद में नहीं पढ़ेगा। [बहार-ए-शरीअत, जिल्द: 1, स: 662] والله تعالى أعلم

क्या जिसने ईशा की नमाज़ जमात से न पढ़ी हो, वह वितर की नमाज़ जमात से पढ़ सकता है?

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  सवाल: क्या फरमाते हैं उलमा-ए-दीन व मिल्लत इस मसले में: अगर इशा की फर्ज़ की जमात छूट जाए , तो क्या तरावीह और वितर की जमात में शामिल हो या नहीं? मुस्तफ्ती: फतेह मुहम्मद शाह, दोबोलिया बाज़ार, जिला बस्ती بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ जवाब: जिसने इशा की जमात अकेले पढ़ी हो , वह तरावीह की जमात में शामिल हो जाए , अकेले न पढ़े। हाँ, वितर की जमात में शामिल न हो। "दर मुख्तार" में है :"مصليه (أي الفرض) وحده يصليها معه. (أي التراويح) معه (أي مع الإمام)" (अल-हसकफी, अद-दुर अल-मुख्तार, जिल्द: 2, पृष्ठ: 47, दार अल-फिक्र, बेरूत) "रद्द अल-मुहतार" में है: إذا لم يصل الفرض معه لا يتبعه في الوتر. (इब्ने आबिदीन, रद्द अल-मुहतार, जिल्द: 2, पृष्ठ: 48, दार अल-फिक्र, बेरूत) سبحانه وتعالى أعلم. लिखा: फ़क़ीह-ए-मिल्लत मुफ्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी अलाईहिर्रहमा [फतावा-ए-फ़ैज़ुर्रसूल, ज: 1, स: 376]

रोज़े की हालत में नस या माँस में इंजेक्शन लगवाने से क्या रोज़ा टूट जाता है?

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सवाल: रोज़े की हालत में नस या माँस में इंजेक्शन लगवाने से क्या रोज़ा टूट जाता है? जवाब: रोज़े की हालत में नस या माँस में इंजेक्शन लगवाने से रोज़ा नहीं टूटता । फतावा-ए-फैज़ुर्रसूल में लिखा है: "तहक़ीक़ ये है कि इंजेक्शन (Injection) से रोज़ा नहीं टूटता, चाहे रग में लगाया जाए चाहे गोश्त में।" ( फतावा-ए-फैज़ुर्रसूल, किताबुस-स्याम, जिल्द 1, पृष्ठ 514, शब्बीर ब्रदर्स )

Kya tarawih ki jagah qaza namaz padh sakte hen

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  सवाल क्या फरमाते हैं उलेमा-ए-किराम इस मसले के बारे में कि अगर हिंदा अपनी क़ज़ा नमाज़ें पढ़ना चाहती हो, तो क्या रमज़ान में तरावीह की जगह वह क़ज़ा नमाज़ें पढ़ सकती है? रहनुमाई फरमाएँ। بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ اَلْجَوَابُ بِعَوْنِ الْمَلِکِ الْوَھَّابِ اَللّٰھُمَّ ھِدَایَۃَ الْحَقِّ وَالصَّوَابِ तरावीह की नमाज़ हर अक़्लमंद और बालिग़ मुसलमान मर्द और औरत पर सुन्नते मुअक्कदा है, जिसका बिला वजह शरई छोड़ना जायज़ नहीं । और फुक़हा-ए-किराम की तसरीहात के मुताबिक़ क़ज़ा-ए-उमरी की अदायगी के लिए तरावीह और पांच वक्त की नमाज़ की सुन्नते मुअक्कदा को नहीं छोड़ा जा सकता । तरावीह की नमाज़ हर मुसलमान मर्द और औरत पर  सुन्नते  मुअक्कदा है। जैसा कि दुर्रे मुख़्तार में है: "(التراویح سنۃ) مؤکدۃ لمواظبۃ الخلفاء الراشدین (للرجال و النساء) اجماعاً" यानी तरावीह की नमाज़ मर्द और औरत पर बिल-इज्मा सुन्नते मुअक्कदा है कि खुलफा-ए-राशिदीन ने इस पर मोवाजबत फ़रमाई है। ( तनवीरुल अबसार म'अ दुर्रे मुख़्तार, किताबुस सलात, जिल्द 02, सफह 597-596, मतबूआ कोइटा ) सद्रुश्शरीअह मुफ़्ती अमजद ...

क्या ईशा की नमाज़ न पढ़ी हो तो जमात के साथ पहले तरावीह पढ़ सकते हैं, तरावीह के बाद ईशा के फ़र्ज़ पढ़ लिए जाएँ तो क्या शरअन नमाज़ हो जाएगी

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  सवाल क्या ईशा की नमाज़ न पढ़ी हो तो जमात के साथ पहले तरावीह पढ़ सकते हैं, तरावीह के बाद ईशा के फ़र्ज़ पढ़ लिए जाएँ तो क्या शरअन नमाज़ हो जाएगी? بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ اَلْجَوَابُ بِعَوْنِ الْمَلِکِ الْوَھَّابِ اَللّٰھُمَّ ھِدَایَۃَ الْحَقِّ وَالصَّوَابِ जिसने ईशा के फ़र्ज़ अदा न किए हों, उस पर तरावीह पढ़ने से पहले ईशा के फ़र्ज़ अदा करना लाज़िम है। अगर ईशा के फ़र्ज़ किए बिना तरावीह पढ़ेगा तो उसकी तरावीह अदा नहीं होगी। इसलिए अगर किसी उज्र (मजबूरी) की वजह से ईशा की जमात रह जाए तो पहले तरावीह की जमात से अलग होकर अकेले ईशा के फ़र्ज़ पढ़ें, फिर तरावीह में शामिल हों। فتاویٰ ہندیہ में है: "والصحیح أن وقتھا ما بعد العشاء إلی طلوع الفجر قبل الوتر وبعدہ حتی لو تبین أن العشاء صلاھا بلا طھارۃ دون التراویح والوتر أعاد التراویح مع العشاء دون الوتر؛ لأنھا تبع للعشاء ھذا عند أبي حنیفۃ رحمہ اللہ تعالی فإن الوتر غیر تابع للعشاء في الوقت عندہ " अर्थात, सही यह है कि तरावीह का वक़्त ईशा के बाद से फ़जर के तुलू (उदय) तक है, वित्र से पहले और बाद में। यहाँ तक...